क्या ग़म है के अरमान दोस्त बुझे रहते हैं अब तेरे
क्यों खुश्क रात का इंतज़ार तू करता है हर सवेरे
उठा खुद को, जगा वो आग, वो बदमस्त चिंगारी
के जीने का मज़ा तो काहिल कभी भी ले नहीं सकते
जो मौज की मस्ती समंदर की है लहरों मैं
उस मज़ा तो लाख साहिल भी दे नहीं सकते