Feb 27, 2009
मिलन
शीत के घुँघरू, ग्रीष्म की झुनझुन,
डाल पे कू-कू पंछी का कलरव,
सुबह का सूरज लाल सा हरदम,
शीत की धूप का शीतल अनुभव।
रात्रि दुलहन की याद में हरपल,
विरह वेदना से अति चंचल,
दिनभर ताप के ताप को सहता,
प्रेमी की भाँति धरा का आँचल।
रात से पहले शाम की खुशबू,
शाम का सपना, पवन है मद्धम,
काली घटा की साड़ी में लिपटी,
रात की कोमल देह की कंपन।
हाथों में चूड़ी, पैरों में पायल,
अति सुसज्जित रात की दुलहन,
पायल की झंकार से गूँजित,
अश्रु से भीगा धरा का आँगन।
धीरे-धीरे इस हवा में बहता,
हवा में बहता, इस धरा पे बहता,
अँधकार का परदा, आगे बढता,
आगे बढता, गिरता रहता।
बाहों में बाहें डाले जब-जब,
करे चुंबन, करे आलिंगन,
रात्रि और इस धरा का मिलना,
अति सुंदर एवम् अति पावन।
समय नहीं एक रेखा पथ भर,
चक्र की भाँति घूमे हरदम,
कल के बाद आज का आना,
रात के बाद ताप का आना,
कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना।
संपूर्ण हुआ यह मिलन सुनहरा,
वाष्प की भाँति गया अँधेरा,
विरह विषाद विदाई के संग-संग,
सूर्य की किरणें लाईं सवेरा।
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